भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाबू सिर जोगे टोपी त न आएल / मगही
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बाबू<ref>मगध में लोग पुत्र को प्यार से बाबू कहते हैं</ref> सिर जोगे<ref>योग्य</ref> टोपी त न आएल।
बाबू के ठग के ले गेल, सुनहु लोगे।
बाबू के सेंतिए<ref>निःशुल्क ही, मुफ्त में ही</ref> ले गेल, सुनहु लोगे।
रामजी कोमल बर लइका<ref>नादान या अबोध लड़का</ref> सुनहु लोगे॥1॥
बाबू देह जोगे कुरता त न आएल।
बाबू के ठग के ले गेल, सुनहु लोगे।
बाबू के सेंतिए ले गेल, सुनहु लोगे।
रामजी कोमल बर लइका, सुनहु लोेगे॥2॥
बाबू गोड़ जोग धोती त न आएल।
बाबू के ठग के ले गेल, सुनहु लोगे।
बाबू के सेंतिए ले गेल, सुनहु लोगे।
रामजी कोमल बर लइका, सुनहु लोगे॥3॥
शब्दार्थ
<references/>