भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तितली हूँ / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:57, 15 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं उड़ी इधर, मैं उड़ी उधर,
मैं तितली हूँ, उड़ती दिन-भर।
हर फूल मुझे रंगीन लगा
हर डाली मुझको प्यारी है,
जब भी मैं यहाँ-वहाँ उड़ती
तब संग-संग हँसती क्यारी है।
मैं उड़ी कल्पना के नभ में--
अपने सतरंगे पंखों पर।
मैं यहाँ गयी, मैं वहाँ गयी
लेकर पराग घर आयी हूँ,
मैं सबको अच्छी लगती हूँ
मैं सबके मन को भायी हूँ।
मैं सुन्दर सपने देख रही--
इन पंखुड़ियों के बिस्तर पर।