Last modified on 15 जुलाई 2015, at 13:59

अपनी महलिया से मलिया मउरी गुथहइ / मगही

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 15 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अपनी महलिया से मलिया मउरी<ref>मौर</ref> गुथहइ<ref>गूँथता है</ref>।
जहाँ कवन बाबू खाड़<ref>खड़ा</ref> जी॥1॥
मैं तोरा पूछूँ मलियवा हो भइया।
केते दूर बसे ससुरार जी॥2॥
तोर ससुररिया, बाबू, मउरिया से खैंचल<ref>खचित</ref>।
चुनमें<ref>चूने से</ref> चुनेटल<ref>चूने से पोता हुआ</ref> तोर दुआर जी॥3॥
मोतिया चमकइ बाबू, तोहर ससुररिया।
चारो गिरदा<ref>गिर्द, तरफ</ref> गड़ल हो निसान<ref>डंका अथवा चिह्न, अर्थात चारों ओर झंड़े गड़े हैं और डंके बज रहे हैं</ref> जी॥4॥
अपनी महलिया में दरजी जोड़ा<ref>दे.-वि.गी. सं. 50, टि. 5</ref> सियइ।
जहाँ कवन बाबू खाड़ जी॥5॥
मैं तोरा पूछूँ दरजियवा हो भइया।
केते दूर बसे ससुरार जी॥6॥
तोर ससुररिया बाबू, जोड़वा से खैंचल।
चुनमें चुनेटल तोर दुआर जी॥7॥
मोतिया चमकइ बाबू, तोहर ससुररिया।
चारो गिरदा गाड़ल हइ निसान जी॥8॥

शब्दार्थ
<references/>