भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानकी रामायण / भाग 14 / लाल दास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 16 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल दास |अनुवादक= |संग्रह=जानकी रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धीरे धरणि धनुर्वरि धेन्वे धनदे धवले धन्ये।
धनदाये धनपतिगृहवासिनि धूमे धर्मिणी धान्ये॥
धर्मवर्गदायिनि धृतिपात्रे धीरमते धुनि धामे।
धामिनि धर्मणि धनिकधनपालिनि धूम समुद्भवि धर्मे॥

धान्यमंजरीधारिणि धनपे धान्यकरणि धनपाये।
धनमान् श्रीधनपतिरवामिनि धरणि धनेश्वरि धात्रे॥
नम्रे नम्रप्रिये नारायणि नागाभरणे निवृते।
नीति-निरंजिनि नागरि नवले नगवासिनि नग-दुहिते॥

नारसिंहि नित्ये निर्व्योमे निशि तृप्ते निधिनन्दे।
निधिलक्ष्मी नन्दिनि नारायणि नारि नटेश्वर वन्द्ये॥
नलिनी-दलवासिनि नयकारिणि नन्दनवासिनि नलिने।
नन्दिनि नन्दसुते नुति नलिके निद्रे नीतिनवीने॥

पùनिवासिनि पùिनि पùे प्रथिते प्रतिपत्पूर्णे।
पृथ्वि प्रभाकरि पालनकारिणि पन्नगि पीतसुवण॥
पतिपत्नीरूपे प्राणेश्वरि प्राणशक्ति प्रणप्रीते।
प्रत्यंगिरे परमपुरुषेश्वरि पत्रे पूते पीते॥

पुर्णाचन्द्रवदने पापध्ने पशु वर्धिनि परमेशे।
परमौषधि पाविनि पबिनो परि क्रोधे पुण्यपरेशे॥
पुण्ये प्रकृति पयोनिधि कन्ये पूर्ज्यपुष्टिप्रतिज्ञे॥
परमानन्दस्वरूपिणि पार्वति पालिनि पोषणि प्रज्ञे॥

पुण्डरीकनयने पीवस्तनि पाशिनि पंचमि प्रथमे।
पद्मनिभे पीताम्बरधारिणि पुण्यप्रदायिनि परमे॥
फुल कमलवदने फलदायिनि फणिजे फणिपतिरूपे।
फल्गु फले फलदे फुल्लाम्बुजवासिनि फणिफल रूपे॥

ब्रह्मजननि ब्रह्माण्डनिवासिनि ब्रह्मिष्ठे बनगेहे।
ब्राह्मणि ब्रह्मस्वरूपिणि बलदे वन वासिनि बल देहे॥
भद्रे भद्रप्रदे भय भ्रामरि भूतप्रिये भृगुकन्ये।
भगवति भोगप्रिये भयहारिणि भैरवि भृगुकुल धन्ये॥

महति महाभयनाशिनि मरुते मृतसंजीवनि माल्ये।
मोक्षलक्ष्मि माधवि मनमोहिनि मोहस्वरूपिणि मान्ये॥
मणि मन्दिर वासिनि महिमे महि मारुति माधवदयिते।
माह मोह दायिनि मंगल गति मधुकरि मदनोन्मन्ने॥

महालक्ष्मि महिषासुर मर्दिनि मेधे माधव माये।
मोक्ष प्रदे मोहिनि मन्दाकिनि मोदप्रिये मधुकाये॥
मृगशावाक्षि महागजगामिनि मुक्तादशने मदनें।
महाकालि माहेश्वारि मधुकरमालिनि मुख्ये मलिने॥

मृत्युंजयभामिनि मृत्युंजय मोहिनि मोचिनी मित्रे।
महामंत्र मंजुल गतिदायिनि महादेवि मति मंत्रे॥
योगेश्वरि योगिनि यमुने यति यामिनि यशदे योग्ये।
योग जननि योगेश्वर नमिते योनियशोधरि यज्ञे॥

रमणि रमे रामे रामेश्वरि क्मिणि रोहिणि रिक्षे।
राजकुलेश्वरि राके रंजिनि राज्यप्रदे रति रक्षे॥
राजलक्ष्मि रक्ते राकेश्वरि रामप्रिये रस रूपे।
रम्ये रम्यस्वने रमणीये रेखे रत्नस्वरूपे॥

रत्ने रत्नप्रिये रत्नेश्वरि रत्नावति रतिरेखे।
राम वल्लभे रघुपतिपूज्ये रसमयि रतिजय लेखे॥
रिपुमर्दिनि राजेश्वरि रोहिणि राम प्रिये रमणीये।
रुचि रूपिणि रूद्राणि रतिप्रिये रूपेश्वरि रतिश्रीये॥

समयि रम्य विनाशिनि रुचिरे रुद्रप्रिये रणधीरे।
रंगप्रिये रजनी रक्तोत्पलवासिनि रक्तशरीरे॥
लोले लक्ष्मिलये लज्जे लिपि लोपामुद्रे लोले।
लोके ललिते ललने ललिमे लावण्ये लयशीले॥

लोकजननि लोकाक्ष लोभदे लोहितवर्णे लीने।
लोलचेष्टिते लज्जाशीले लतिके लोकयवोने॥
लम्बोदरि मणिमयलावण्ये लेखनिके लघुवदरे।
लीलोद्योतित-लोक-विमोहिनि लोकेशे लघुवरदे॥

लोक जननि विन्ध्याचलवासिनि वैष्णवि बिरजे विमले।
विष्णुप्रिये विभवे विभुविल्वे वृद्धिप्रदे वलि वगले॥
श्रीकरि पत्निश्रिये शुभ्रे श्री शोणशरीरे श्रेष्ठे।
शरच्चन्द्रवदने शान्ते श्रुति शशि सोदरि शशि दृष्टे॥

षटचक्रे षटचक्र निवासिनि षट्कोशालय भरणे।
षष्ठि षष्ठिके षट्रस दायिनि ष्टकर्मे षट्चरणे॥
सिन्धु सुते सुखसम्पतिदायिनि स्वर्गप्रदे सुखपात्रे।
स्वर्गप्रदे सुरसंकट नाशिनि सामप्रिये शुचि गावे॥

हिषीकेश दयिते हरिप्रेयसि हर्षे हरि देहस्ये।
हरि माा हरि नेत्र कृतालय हस्तिनि हरि चितस्थे॥
क्षीरसमुद्रसुते क्षेमावति क्षोणि क्षपे क्षय क्षोणे।
क्षेमंकरि क्षिति क्षान्ति क्षमे क्षति क्षौमाम्बर परिधाने॥
-- -- -- --

इति नाम्नां श्रीदेव्याः पठति य एकाग्रः शुभगीतम्।
पदमाया अनुकम्पापात्रं पूरित कामोऽभीतम्॥
लब्ध्वा वांछितमखिलं लोके चान्ते सद्गति भागी।
जन्मनि जन्मनि जगदम्बा पदकमले दृढ़ानुरागी॥

विचरति लोके वीतविवादः सन्मर्य्यादो धीरः।
कीर्त्तिकलापयुतो रिपुवारणमारणनृहरिशरीरः॥
सच जीवन्नपि भवति देव इव सुखी धनी धनदाता।
तन्न जहाति कदापि पुत्रमिव सेव्या कमला माता॥

इति श्रीलक्ष्मीसहस्रनामावलीगीतं
लालदासकृतं समाप्तम्।

लक्ष्मीगीतम्

जय जय कमलनिवासिनि कमले कमलमुखी श्रीकरुणे।
कमलपाणि कमलाक्ष-विराजित कमलमाल उर अरुणे॥

कनकवरण कनकाम्बर परिधन भूषित कनकाभरणे।
कलानाथ कर मौलि प्रकाशित कोटि किरण द्युति हरणे॥

विधि हरिहर अपनेक कृपा सैं सृष्टिक करथि वितरणे।
अगम अगोचर सभमे व्यापित अपने विश्व विहरणे॥

सकल चराचर जगत केरछी केवल अपने भरणे।
से महिमा जानथि विश्वम्भर अहिंक पाबि आचरणे॥
श्रीपदकमल कहल नौका ये कयल सभक्ति स्मरणे।
भव जलनिधि तनिकाँ नहि दुस्तर सत्वर हो सन्तरो॥

अहँक विमुख जत जीव जगतमे से चित्रक अनुकरणे।
तनिक जन्म निष्फल जगतारिनि जीवित जानिय मरणे॥

विषयग्रस्त हम सतत व्यस्त छी तैं मन भेल विवरणे।
नहि सुभ्यस्त प्रशस्त आग अछि केवल गति श्रीचरणे॥

कत अपराध भेल हमरा सौं तकर न करु अनुसरणे।
अहिँक निर्मिता माया मोहित कयनहु हयब अकरणे॥

दुख जंजाल कालवश व्याकुल धयलहुँ अपनेक शरणे।
लाल जननि सुत सम्बन्धहु सौं करिय ताप-त्रय हरये॥

कविकृत प्रार्थना गीति

भगवति हरिय हमर दुख जाले॥धु्रपद॥
जायब कतय कहब ककरा हम सभ छथि विकल विहाले॥
मधु कैटभ भय विष्णु विधाता दुखित छला लय काले।
अहिँक भजन कयनहि दुख छुटल हत दुहु असुर कराले॥
इन्द्रादिक सुर मुनि असुरार्दित बेरि बेरि पौलनि साले।
अहिँक शरण धयनहि तनिकहु सभ छुटल दुख-जंजाले॥
अहिँक प्रपंच अधीन सकल सुर पहिरल मोहक माले।
से आनक मेटताह कोना दुख लिखलनि जे विधि भाले॥
काम क्रोध लोभादि मोह मद कलिमल ग्रसल सकाले।
कर्म्म अधीन दीन हम फसलहुँ संकट विपति विशाले॥
कतेक अधम उद्धारल जननी रहि गेल केवल लाले।
शरण जानि भवपाशविनाशिनि करु करसौं प्रतिपाले॥

सुनल एहन हम कान, भगवति॥धु्रपद॥
दुखसौं ग्रसित सतत नहि रह क्यौ अहँक प्रसाद प्रमान।
स्मरणहिसौं से सभ फल पाबथि गाबति वेद पुराण॥
ब्रह्मादिक जे सृष्टिक कर्त्ता औरो सुर सामान।
जखन जखन भयविकल भला से कयलनि त्रान॥
सुरथ सुदर्शन नृपति राज्यहत कयलनि सुमिरन ध्यान।
भुक्ति मुक्ति दुहु देलहु अपने कयल पुरान बखान॥
मुनिगण सुजन कतेक दुखार्दित धयलनि शरण निदान।
परमानन्दक से सुख भोगल पाबि सुनिर्मल ज्ञान॥
असुर समूह सदा अधकारी पापक नहि परिमान।
अरिभावेँ तनिकहुँ हे जननी तारल बाढ़ल मान॥
जतेक अधम उद्धारल अपने कहुँधरि के कर गान।
लाल रहल एक कलिदुख व्याकुल करिय अभय वरदान॥

इति लालदास कृत लक्ष्मीकाण्ड
समाप्त