जानकी रामायण / भाग 15 / लाल दास
अथ राधाकाण्ड प्रारम्भ
भागवत दशम स्कन्ध
सीताचरित ललित सुनि लेल। भरद्वाजकाँ बड़ सुख भेल॥
तखन पुछल मुनि दुहु कर जोरि। कहु गुरु रहलि कथा जे थोड़ि।
कोन विधि नारद सिखलनि गान। कयलनि कोना कृष्ण सनमान॥
कहल मुदित मन मुनि बाल्मीकि। सुनु शुभ कथा पुछल अहँ नीकि।
नारद घुमयित तीनू लोक। हरिगुण गबयित फिरथि सशोक॥
सुमिरि सुमिरि तुम्बुरुक मानि। नारदकाँ बड़ होइनि गलानि।
तकितहि रह नित कृष्णक बाट। द्वापर हेतु बढ़ल उच्चाट॥
हृदय कमलमे ध्यान लगाय। हरिसौं मन-मन कहथि मनाय।
हा जगदीश्वर दीन दयाल। हरण करू मानस दुख जाल॥
अब नहि मनमे होइछ चयन। करिय कृपा विभु करुणा-अयन।
जेहि प्रकार हो विद्या साम। तेहन अनुग्रह करु घनश्याम॥
से सुनि हरि कयलनि आश्वास। थिर रहु मन राखू विश्वास।
खेपल बहुत रहल दिन थोड़। हयत पूर्ण विद्या विनु खोड़॥
सुनि मुनि मन-मन मुदित भेलाह। हरि गुण-गुण गाबय लगलाह।
कतोक काल जखना गेल बीति। द्वापर युग आयल चल रीति॥
सृष्टिक परिपाटीक प्रभाव। सुर पर कलिक बढ़ल दुर्भाव।
असुर बढ़ल भेल पाप प्रचार। वसुधा काँ भेल भार अपार॥
सहि नहि सकली विधिसौं कहल। हरिपुर जाय हरिक पद गहल।
दोहा
मधुसूदन वैकुण्ठमे राजित लक्ष्मिक संग।
पहुँचलाह तँह देवगण कहलनि विपति प्रसंग॥
से सुनि हरि सभकाँ कहल सुनु सुरगण सुविचार।
सभ मिलि निज-निज अंस सौं महिमे लिय अवतार॥
चौपाई
दुष्टक हो जेँ विधि संहार। धर्म्मक पालन कारन सार।
महिमण्डलमे करु संचार। हमहू ततहि लेब अवतार॥
मथुरामे वसुदेवक धाम। जायब कृष्ण हयत मोर नाम।
ततय करब हम एहन उपाय। जेहि सौं अरि समुदाय नशाय॥
दुर्गा सौं हरि कहल बुझाय। नन्दक भवन जन्म लेल जाय।
अहिँ आधारशक्ति जगदम्ब। सकल काज में अहिँ अवलम्ब॥
अहँक कृपेँ सभकाँ कल्याण। दुष्टक वध करु भक्तक त्राण।
मथुरा मे हम जनमब जाय। ततय करब अहँ हमर सहाय।
लक्ष्मी काँ पुनि कहल सप्रीति। जाउ प्रिये महिमे सुख रीति।
अपन अंश महिमे विस्तारि। सोलह सहस नरेश कुमारि॥
होउ ततय राखब उत्साह। सभ सौं हम तहँ करब विवाह
भीष्मनृपति दुहिता एक अंश। रुक्मिणि नाम होयत सद्वंश॥
रानी हमर होयब परधान। कन्दर्पक माता सभ जान।
रवितनया कालिन्दी नाम। लक्ष्मी - अंश होयत मोर वाम॥
अर्द्ध अंश तुलसी गुण-धाम। नाम लक्षण हयत सुबाम।
सत्य सुता सतभामा नाम। धरा - अंस सौं होउ गुणधाम॥
पारबतिक अंसे एक नारि। जाम्बबती होउ हे सुकुमारि।
सरस्वती काँ कहल मुरारि। अहँ होउ बाणासुरक कुमारि॥
उषा नाम शोणितपुर वास। हमर पौत्र सौं हो सहवास॥
हे गंगे अहँ महि मे जाउ। शान्तनु नृपतिक नारि कहाउ।
शान्तनु होयता सागर अंस। वसु गण जन्म लेता तेहि वंश॥
दोहा
पूर्ण अंस लक्ष्मी अहाँ राधा नाम प्रसिद्ध।
ऋद्धि सिद्धि सँग लय रहब ब्रज मे सहित समृद्धि॥
चौपाई
और समुद्र होथु वृषभान। जमुना तीर वसथु बरिसान॥
लक्ष्मिक उत्पति तनिके धाम। द्विभुज रूप राधा हो नाम।
रोहिण सौं लिअ जन्म अनन्त। नाम हयत बलभद्र सुसन्त॥
रिपु मारब हम अहँ दुहु भाय। भूमिक भार उतारब जाय।
अँह सुनु मन दय हे कन्दर्प। हमर पुत्र होयब बलदर्प॥
हयत नाम प्रद्युम्न अघारि। रती विवाहब सम्बर मारि।
हे षट्मुख अहाँ शूर सुबुद्ध। प्रद्युम्तक सुत होउ अनिरुद्ध॥
धर्म्मक अंस लेथु अवतार। नाम युधिष्ठिर परमोदार।
वायु अंस सौं भीम सुनाम। होथु शत्रुनाशक बलधाम॥
इन्द्र अंस लेथु महि अवतार। अर्जुन नाम विदित संसार।
अश्विनि कुमार अहाँ दुइ अंस। होउ नकुल सहदेव सुवंश॥
सूर्य्य अंस अवतार सुवर्ण। महावीर नामक होथु कण।
चन्द्र अंस अभिमन्यु उदार। नाम विदुर होथु यम अवतार॥
अग्नि अंस सौं द्रोण सुबीर। कश्यप सौं वसुदेव सुधीर।
रोहणी यसुदा अदितिक अंस। भीष्म होथु वसु अंस सुवंश॥
कलि अंसे दुर्योधन दुष्ट। सपरिवार सय भाय सुपुष्ट।
शान्तनु नृप अवतार समुद्र। अश्वत्थामा होयता रुद्र।
देविक अंस यक्षमे जाय। जनमथु दु्रपदी नाम कहाय।
शतरूपा होथु हमर बहीनि। नाम सुभद्रा अवगुण होनि॥
दोहा
एहि विधि हरि सभकाँ कहल महि मण्डल मे जाय।
वेश वेश कहि अमर गण चल गेला हरखाय॥
सोरठा
भेल जखन एकान्त शोकाकुल लक्ष्मी कहल।
सुतु प्राणेश्वर कान्त अपने बिनु जायब कतय॥
चौपाई
अहँ बिनु रहब कोना महि जाय। क्षण भरि प्राण रहत नहि हाय।
एहिखन सौं मन भेल अधीर। विरह अनलसौं दगध शरीर॥
अपनेक बिनु क्षण भरि नहि नयन। जीवन दहय बहय दुहु नयन।
सदा नारि काँ पति लख मूल। बिनु पति देह मृतक समतूल॥
जौं जायब महिमे हम नाथ। अहँ बिनु सन्तत रहब अनाथ।
चातक काँ स्वाती जल आश। तेहिना अहँक मिलन प्रत्याशा॥
कहिया हयत अहाँसौं भेट। से कहु हमर बिरह दुख मेट।
होयत हमर जन्म जेहि ठाम। ततहि अहूँ आयब घनश्याम॥
नहि तोँ अहँ बिनु निश्चय नाथ। महिमे जाय मरब धुनि माथ।
माय बाप बान्धव परिवार। धन जन भवन सुखद व्यवहार॥
थिक यद्यपि ई सभ सुखधाम। पति बिनु किन्तु दुखद परिणाम।
दोहा
हरि काँ लक्ष्मी कहल कति प्रेमाकुल एहि रूप।
तखन ततय तनिकाँ कयल कति बिधि कहि विभुचूप॥