जानकी रामायण / भाग 16 / लाल दास
चौपाई
प्राणप्रिये किय छी अहँ दीन। जीवन हमर अहिँक आधीन।
अहँ छी विश्वक प्राणाधार। शक्ति स्वरूपा त्रिणुगाकार।
अहि सौं विश्वक उत्पति भेल। करतल सकल चराचर लेल॥
सभक देह मे अहँक निवास। क्यौ नहि अहँ सौं पृथक प्रकाश।
नहि हमरा अछि अहँक वियोग। बनले रहय सदा संयोग॥
एक प्राण हम अहँ दुइ देह। नहि एहिमे किछटा संदेह॥
जायब जखन अहाँ जेहि ठाम। ततहि हमहु आयब परिणाम॥
लेब अहाँ ब्रजमे अवतार। हमहु मिलब नन्दक आगार॥
ततहि भेटब अहँ सौं हरषाय। दुहु मिलि लीला करब सहाय।
वृन्दावन बसि यमुना तीर। करब केलि दुहु कुंज कुटीर॥
कहलनि एहि विधिविष्णु बुझाय। शान्त भेलिह लक्ष्मी तहँ जाय।
एहि विधि हरि कयलनि उद्योग। जेहि सौं छटय महाभव रोग॥
जखन गेल कालान्तर बीति। द्वापर युग आयल चल रीति॥
तखन भेल कृष्णक अवतार। लक्ष्मी अयिलिह पुनि संसार॥
दोहा
बड़ रहस्य ई गोप्य अछि कृष्ण जन्म वृत्तान्त।
कहयित छी संक्षेपसौं सार कथा एकान्त॥
चौपाई
दशरथ पट महिषी जे तीनि। तेहिमे केकयि रहथि नवीनि॥
तनिके बश नृप रहथि सदाय। देल रामकाँ विपिन पठाय॥
बड़ निर्दय नहि ममता-लेश। भेल रामकाँ कतेक कलेश॥
जखन देल से बल्कल चीर। पहिरि जाउ बन कहल अधीर॥
भेल रामकाँ मनमे क्रोध। कहल सधायब हम ई शोध॥
द्वापर लेब कृष्ण अवतार। हयत अहाँकाँ कारागार॥
जेहि विधि कौशल्या दुख भोग। अहूँ सहब दुख पुत्र वियोग॥
वर्ष चतुर्दश गोकुल रहब। तावत कारा-दुख अहँ सहब॥
त्रेतामे केकयि छल जैह। द्वापरमे देवकि भेलि सैह॥
तनिकर उदर राम पुनि जाय। जन्म लेल मथुरामे आय॥
दोहा
अघनाशक भगवत - चरित सुनु सज्जन मन लाय।
भवसागर तरु विनुहि श्रम जनम मरण दुख जाय॥
चौपाई
यादव वंश रहथि वसुदेव। बड़ ज्ञानी धार्मिक सुखसेव॥
उग्रसेन राजा मथुराक। अघ अवगुणसौं रहथि फराक॥
किन्तु तनिक सुत दैत्यक अंस। कंस असुर भेल तनिके वंश॥
कंसक बहिनि देवकी नाम। तनिक विवाह भेल तेहिठाम॥
उग्रसेन कृत कन्या दान। लय वसुदेव कयल प्रस्थान।
कंस बहिनि पहुँचाबक काज। रथ चढ़ि चलला अपनहि राज॥
पथमे गगन गिरा एक भेल। सुनल कंस चिन्ता चढ़ि गेल॥
देवकीक आठम सन्तान। कंसक काल कथा परमान॥
कंस कहल तरुआरि उपारि। देवकिकेँ एखनहि देब मारि॥
तनिकाँ वसुदेव कहल बुझाय। स्त्रीबध पापक त्रास देखाय॥
कयल प्रतिज्ञा देब सन्तान। भेल देवकिक प्राणक दान॥
किन्तु कंस रचि कारागार। दुहुकेँ बन्द कयल दुखभार॥
क्रम-क्रम हो तनिकाँ सन्तान। देथि कंसकेँ लेथि से प्रान॥
छुओ पुत्रक वध जखना भेल। सातम संकर्षण ब्रज गेल॥
आठम गर्भ कृष्ण साक्षात। अवतरला नाशक उतपात॥
माय - बापकाँ दशर््न देल। महाप्रकाश ततय भय गेल॥
तेज न सहि सकला वसुदेव। शिशु बनला पुनु देवक देव॥
दोहा
कंसक पहरा प्रबल छल सभ सुतलाह अचेत।
जगदम्बा मोहित कयल ककरहु रहल न चेत॥
चौपाई
वासुदेवकाँ लय वसुदेव। चलल नुकाबय ममत अतेव॥
युक्ति योगमाया तँह कयल। नन्दक घर कन्या वपु धयल॥
भादव कृष्ण राति अन्धियारि। मुसलाधार बरष घन वारि॥
शक्ति प्रभावेँ छटल कपाट। व्रज वसुदेव लेल भल बाट॥
शेष फनक छाया कय देल। बुन्द - पतन तनि पर नहि भेल॥
बहुयित छल अछि प्रबल बिहरि। फणिपति शोषल लेल संहारि॥
यमुना यद्यपि छलिहि अथाहि। कृष्ण दरश भय गेलिहि थाहि॥
निर्भय वसुदेव भेला पार। अयला झट दय नन्दक द्वार॥
जुमला नन्दक भवन सवेर। देखल सभकाँ निन्दे भेर॥
अदलि-बदलि कन्या लय लेल। घुरला कंसक त्रासक लेल॥
प्राप्त भेल रक्षक लय गेल। कंसक दृगगोचर कय देल॥
कहल विनीत कथा वसुदेव। ई नहि पुत्र थिकथि हे देव॥
कन्यासौं नहि अहँक विनाश। छोड़ि दिअ राखू विश्वास॥
नहि मानल वसुदेवक बयन। लगला कन्या हतय अचयन॥
पटकय लगला जखनहि कंस। उड़ि गेलिहि जगदम्बा-अंस॥
गगन-गिरा तहँ कयल प्रकाश। कंसक हृदय बढ़ाओल त्राश॥
नन्द-भवन गोकुल गेल बाल। सँह कंस तोर प्राणक काल॥
ई कहि विन्ध्याचल से आबि। कयल निवास अचल थल पाबि॥
सुनल कंस नभ-वाणी गूढ़। त्रास-विवश भय गेल विमूढ़॥
तदनन्तर पुनि नारद आबि। देल डराय सुअवसर पाबि॥
बड़ गोट बढ़ल कंसकाँ त्रास। लागल बहुविधि करय प्रयास॥
करयित रहय विचार सदाय। कृष्ण-मरण हित विविध उपाय॥
दोहा
पूतनादि पुनि असुर कति मायावी बलवान।
व्रज पठाय सभकाँ कहल हरह कृष्ण केर प्राण॥
चौपाई
असुर प्रलम्ब बका चाणूर। तृणावर्त पुन अघा असूर॥
मुष्टिक द्विविद पूतना बाम। केशी धेनुक भौमा नाम॥
कंसक मंत्री पाप निदान। जेहने नृप तेहने परधान॥
तेहिमे प्रथम पूतना घोर। बालघातिनी हृदय कठोर॥
कंसक निकट विकट बनि रूप। आयिलि दुष्टा चूपहि चूप॥
से निशिचरी महा बलवान। कहल हरब हम कृष्णक प्राण॥
देल जाय नृप विष मँगबाय। स्तन लगाय अरि देब नशाय॥
से सुनि नृप मँगवाओल सर्प। आयल विषधर करयित दर्प॥
देल महाविष अहि - समुदाय। पुतना कुचमे लेल लगाय॥
कपट रूप से सुन्दरि बनलि। कृष्ण बधक कारण से चललि॥
मथुरा सौँ कयलक प्रस्थान। नारद देल गरुड़काँ जान॥
खगपतिकाँ छल बड़ अभिमान। क्यौ बलवान न हमर समान॥
तैँ नारद मुनि हरि-रुचि पाबि। कहल गरुड़काँ झट दय आबि॥
कुच विषदय दुष्टा चलि जाय। मारति हरिकाँ दूध पिपाय॥
झट दय जाउ करू जनु देरि। मारू पथमे पकड़ि सबेरि॥
से सुनितहि खगपति खिसिआय। घेरल पथमे तकरा जाय॥
चललिह कतय कहह निर्व्याज। नहि तौँ प्राण हरब हम आज॥
कहल पूतना सुनु मतिमान। कृष्ण दरश कारण प्रस्थान॥
पुछलनि गरुड़ किअय तौं तखन। चललिह विष कुचमे दय एखन॥
बनलिह ब्याजेँ सुभगस्वरूप। तृण पसरल जनि आन्धर कूप॥
दोहा
देखि पूतना तोहर छबि मनमे हो सन्देह।
चललिह करय अनिष्ट किछ बुझि पड़ कपटक देह॥