मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बगिया<ref>बाग, बागीचा</ref> में ठाढ़ा भेल कवन बेटी, बगिया सोभित लगे हे।
बाँहि<ref>बाँह, भुजा</ref> पसार मलिनिया कि आजु फुलवा लोर्हब<ref>लोढूँगी</ref> हे॥1॥
धीर धरु अगे मालिन धीर धरु, अवरो<ref>और</ref> गँभीर बनु हे।
जब दुलहा होइहें कचनार<ref>एक वृक्ष, जो हरा-भरा रहता है, अर्थात कचनार की तरह हरित-पुष्पित</ref> तबे फुलवा लोर्हब हे॥2॥
मँड़वाहिं ढाढ़ा भेल कवन बेटी, मड़वा सोभित लगे हे।
बाँहि पसार कवन दुलहा, आजु धनि हमर<ref>हमारी</ref> हे॥3॥
धीर धरु अजी परभु, धीर धरु, अवरो गंभीर बनु हे।
जब बाबू करिहन<ref>करंेगे</ref> कनेयादान, तबे तोहर होयब हे॥4॥
शब्दार्थ
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