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रियासत जब भी ढहती हैं / प्रताप सोमवंशी

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रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं
कहीं पंचर बनाते हैं कहीं तांगा चलाते हैं

बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमाते हैं
सुबह से शाम तक फुटपाथ पर किस्मत बताते हैं

जमूरा सिर खुजाता है, मदारी हाथ मलता है
तमाशा देख कर बदमाश बच्चे भाग जाते हैं

किसी के साथ रहना और उससे बच के रह लेना
बताओ किस तरह से लोग ये रिश्ता निभाते हैं

हजारों लोग मिलते हैं तो कोई इक समझता है
बड़ी मुश्किल से हम भी दोस्ती में सिर झुकाते हैं