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वक़्त रफ़्तार से अपनी चलता रहा / सिया सचदेव

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वक़्त रफ़्तार से अपनी चलता रहा
और संसार पल पल बदलता रहा

थोड़े ग़म थोड़ी खुशिया सभी को मिली
चोट खा खा के इंसा संभलता रहा

तुझसे मिलने की चाहत में ए ज़िन्दगी
चाँद आँगन में शब् भर टहलता रहा

उसने भी गरम लहजे में गुफ़्तार की
खून मेरा भी दिन भर उबलता रहा

पा-ये-तकमील तक तो न पंहुचा कभी
ख्वाब तो मेरी आँखों में पलता रहा