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दिल बयाबां है आँख है वीरान / सिया सचदेव
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दिल बयाबां है आँख है वीरान
अपनी हालत पे हूँ मैं खुद हैरान
एक सन्नाटा है मिरे दिल में
रहगुज़र जिंदगी की है सुनसान
हर तरफ भीड़ नज़र आती हैं
फिर भी ढूढे मिले न इक इंसान
कुछ अजीबो ग़रीब हालत है
जिस्म भी लग रहा है अब बेजान
दिल में रक्खे भी क्या किसी से गिला
चंद घड़ियों के रह गए मेहमान
दिल ये मासूम कब समझ पाया
मेरे अपने जतायेगे एहसान
हर कोई दोस्त हो नहीं सकता
ए सिया क्यूँ है इतनी तू नादान