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एलिसी पैलेस से लौटे राष्ट्राध्यक्ष / संतलाल करुण

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मैं एक अछूत हूँ
अछूत राष्ट्रपति के रूप में भी
मेरी फ्रांस-यात्रा ऐतिहासिक रही
वहाँ के लोग
जाति-व्यवस्था से परिचित नहीं
पर यहाँ के लोगों ने
जानकारी देने में कोई कसर नहीं छोड़ी
नहीं तो मेरा अछूतपन इस तरह
कहाँ उजागर हो पाता!

वहाँ के अख़बारों ने वही लिखा
जो भारतीय अख़बार
पिछले तीन सालों से लिखते रहे
मुझे ऐसी टिप्पणियों से
फ़र्क़ नहीं पड़ता
मैं इनका आदी हो चुका हूँ
अब तो फ्रांसवाले भी जान गए
कि भारत में अस्पृश्यता
राष्ट्रपति-भवन तक
पीछा नहीं छोड़ती।

मुझे शंबूकों-एकलव्यों-जैसे
अपने चहरे-मोहरे का पता है
मुझे अच्छी तरह पता है
मेरा देश अछूतपन के बिना
मुझे सटीक पहचान नहीं देता
मैं अध्यापन, पत्रकारिता, राजनय
कुलाचार्यत्व के कर्मों से
जीवन भर जुड़ा रहकर भी
अछूत-का-अछूत ही रहा
मैं इंग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया, वियतनाम
चीन, तुर्की, थाइलैण्ड
और जहाँ कहीं भी गया
अछूतपन से मेरा पिण्ड कहाँ छूटा।

व्यवस्था की आड़ में
राज, समाज, धर्म को खड़ाकर
मेरे जीवन को बाँधे रखने की
अनेक नागपाश नीतियाँ
कब नहीं प्रायोजित की गईं
जिन्हें अपने जीवन से बार-बार मेटकर भी
मैं अछूतपन से कब उबर पाया
शिक्षा-दीक्षा, धन-धाम, पद-प्रतिष्ठा
किसी से भी मेरा कितना उद्धार हो सका
कोई मुझे भीतर तक छूकर
देख सके तो देखे
मैं इस देश का
सबसे बड़ा अछूत हूँ।

मैं एक अछूत हूँ
मुझ-जैसे अछूतों का यह हाल है
तो उन अछूतों का क्या होता होगा
जो अछूतपन के चक्रव्यूह में
चारों ओर से घिरे हैं
जिनके ख़ून-पसीने का रंग
यहाँ सबसे सस्ता है
जिनके बच्चों के गले में
पैदा होते ही
अछूत के नाम का पट्टा
डाल दिया जाता है
अपना मतलब गाँठने के लिए।

मैं एक अछूत हूँ
मैं दुनिया से नहीं डरता
दुनिया के बड़े-से-बड़े
झूठ से नहीं डरता
ज्ञान, संघर्ष, विवेक सब मुझसे
बराबर हाथ मिलाते हैं
पर मैं इस देश को
अपने ही देश को
छूने से डरता हूँ
मेरे निकट मत आओ
मेरे पास मत बैठो
मुझे छुओ मत
मुझे छूने भर से पाप लगता है
मेरा छुआ
अन्न, जल, भूमि सब कुछ
अपवित्र हो जाता है
अब तो मैं घर-बाहर, देश-विदेश
हर कहीं अछूत हूँ।