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कँगना भी बदलूँ, पहुँची भी बदलूँ / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कँगना भी बदलूँ, पहुँची भी बदलूँ, पिया बदल कोई लेवे।
चदरिया न बदलूँ हमर<ref>हमारी</ref> हरिअर<ref>हरे रंग की</ref> चद्दर बुटेदार, चदरिया न बदलूँ॥1॥
झाँझ भी बदलूँ, लरछा<ref>एक प्रकार का आभूषण</ref> भी बदलूँ, पिया बदल कोई लेवे
चदरिया न बदलूँ, हमर हरिअर चद्दर बुटेदार, चदरिया न बदलूँ॥2॥
कंठा भी बदलूँ, हयकल<ref>गले में पहना जाने वाला एक आभूषण</ref> पिया बदल कोई लेवे।
चदरिया न बदलूँ, हमर हरिअर चद्दर बुटेदार, चदरिया न बदलूँ॥3॥
शब्दार्थ
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