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सनेस / सनेस / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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ने असमानक चान, न चर चाँचरसँ सजल मखान
ने पूरी - पकवान जोगाओल, ने फल - फूल, न पान
किछु खर-खर आखर, किछु स्वर-व्यंजन, किछु छद
जतने जत जीवने जोगाओल से सब साजि समान
भरल सिनेह अहींक उदेश, अनलहुँ अछि ई अपन सनेस॥1॥
उठि भोरे बाबा सिनेहसँ श्लोक कठ करबौल
बाबू व्यस्तहुँ रहि, सिनेहसँ जे किछु नीति सिखौल
बाबी - नानी कथा - पिहानी कहि कत रीति रमौल
माय कते जतनेँ जे बानी रसमे बोरि पिऔल
लय तकरहि माधुरी असेस, अनलहुँ अछि ई अपन सनेस॥2॥
जाहि माटिसँ गढ़ल गेल छी तकरहि लय किछु लेश
जाहि पानि केँ पिबि पनिगर छी तकरहि लय किछु शेष
जाहि वसन-भूषन मे सजि-धजि, धयलहुँ अनुपम वेश
जकर बसात लागि पुलकित छी, तकरहि परस विशेष
जे किछु देशक रस-आवेश, अनलहुँ अछि ई रतन सनेस॥3॥

हम न घुमब भूगोल-खगोल, सुनबे कलबल अहिँक किलोल
गुफा-तपोवन घूमि-घूमि दूर, तपसी -साधु परेखल पूर
गुनी - पडितक घुमलहुँ टोल सुनलहुँ कथा - पुरानक बोल
परी - देश केर रंगारंग देखलहुँ, सुनलहुँ रंग - विरंग
अभियानीक घुमंत - फिरंत कत अजगुत नभ नखतक पंथ
कतहु भेटल नहि अमृत अमोल, जेहन अपन आङनमे घोल
शिशुक अहेतु हास उतरोल, हम न घुमब भूगोल-खगोल

बूढक सूनल कथा - उपदेश, युवकक देखल साहस - वेश
कौतुक - कला परेखल जाय चिंतित छल चेतनक निकाय
ज्ञान तथा विज्ञान अशेष कतहु न लसि, कतहु न रस लेश
घुमलहुँ कत पुर-परिसर टोल, चुनलहुँ कत कन रतन अमोल
कतहु न भेटल सुख बिनु मोल, जेहन अपन आँगन मे घोल
भेटल शिशुक मधुक अधबोल, हम न घुमब भूगोल-खगोल
चुमबे कलबल अहिँक किलोल

किछु कथा शेष -

कहबाक बहुत छल किछु नहि कहना गेल
गढ़बाक जते छल गढ़ल न गहना गेल
छन - छन बहइछ नेह - विन्दु उर देश
कथा कहक अछि, एखनहुँ बहुतो शेष