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एकटा पुष्पदन्त साँप छल / राजकमल चौधरी

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एकटा पुष्पदन्त साप छल। आन्हर
बताह, गाछपर रहैत छल, आन्हर
बताह। चिड़ैक गीत सूनि, दादुरक
बोल सुनि, गाछ तर गुल्ली-डंडा,
चोरा-नुक्की, बालक-किलोल सुनि,
कबड्डीक बोल सुनि, कहैत छल
धन्न-धन्न, प्रान धन्न,
जीवन धन्न, कहैत छल वाह-वाह
आन्हर-बताह, पुष्पदन्त साप छल,
गाछपर रहैत छल। चिड़ैक गीत-नाद
सहैत छल।

मुदा, राति भेल, भोर भेल, भोर भेल,
राति भेल। एक्के छनमे साप
बाबू पुरुषक जाति भेल। राति भेल
धोती पहिरिक’ बाबड़ी चीरिक’
गाम दिस विदा भेल। विदा-काल
चिड़ैकेँ कहलक, अबै छी बजारसँ
तोँ पानि भरि ला इनारसँ
भानस कर, भात कर, गाछक सभटा
फूल-पात तोड़िक’ कात कर। हम
आबी तँ गाछ रहय ठुट्ठ। पात नहि,
फूल नहि, डारि नहि, बाँहि नहि
हाथ नहि, नाक नहि, नोर नहि

मुँह रहय, मुदा रहय ककरो कोनो
ठोर नहि।
एतबा कहि, चलिते रहि, साप तँ
बिला गेल। मुदा, जाइत जाइत
गाछक सभ डारि-पात हिला गेल।
बिला गेल। कत’ गेल, कोना गेल,
कोम्हर गल, पश्चिम गेल, उत्तर
गेल, ककरो किछ ज्ञात नहि। राति
अछि अन्हार, होयत आब प्रात
नहि। रहत केवल अन्हार। बन्न
सभ दुआरि। निन्नेमे कानत
सभ लोक। निन्नेमे बाजत सभ
श्लोक।

अन्तमे, अन्हारसँ फूटल एक चूल्हि
धधरासँ जग्ग-मग्ग। दप-दप
करैत। फूटल एक चूल्हि
फूकैत छलीह नहूँ-नहूँ तकरा एक लुल्हि
कनैत छलीह, फूकि-फूकि प्राण जायत
बात ई जनैत छलीह। हाथ छलनि
काटल। देह छलनि छाउर सन, ठोरपर
कौआक लोल छलनि साटल।
गबैत छलीह सिनेमाक गाना। लगेमे
ननदि छलनि ठाढ़ि, दैत छलनि
ताना, भौजी छथि स्त्री नहि भौजी
छथि पाकल जनाना।

से, ई गाना सुनलक साप। कमलाक
धारमे ओतहिसँ देलक झाँप
काँपथ कमला-धार। चारू कात
अन्हार।

ठुट्ठ गाछमे लागल अछि मधुमाछी
लागल अछि मधुमाछीक छत्ता। ओम्हर
धारमे हेलल-हेलल, डूबि-डूबि
क’ पानि पीबिक’, भोज-भजन क’,
सूतल-जागल, जागल-सूतल
साप गेलाह कलकत्ता। ठोँढ़ाइनाथ
ओ रखलनि अप्पन नाम। काज
भनसिया, नाम भनसिया, गाम
भनसिया, दाम भनसिया, जिबथि भनसिया
राम। रखलनि अप्पन नाम। गाछ
पर चढ़ल चोर सभ, कम्मल ओढ़ने
धूआँ कयने, चुप्पे-चुप्पे।
चढ़ल चोर सभ, बड़का मोटरीमे
बान्हि लेलक मधु-छत्ता।
चोर सभ भागि गेल परबत्ता।
बड़ी काल धरि कनली लूल्ही, फूकथि
चूल्ही। धधरा निकसय,
धुआँ पसरय, मधुमाछी सभ गामे-गाम
करय मधुदान। लुल्ही बैसलि
नाक कटाबथि, कान कटाबथि, गाबथि
तिरहुत-गान।

कहिया औताह हम्मर प्रेत-परान?
साप छल पुष्पदन्त, कलकत्ता नगर
गेज, विखदन्त भेल। आन्हर
बताह छल, तखने नीक छल,
गाड़ीक लीक छल, आब भेल
रेल केर इन्जन।
गाम नहि घुरल मुदा, गाम नहि
घूरल। ढोढ़ाइनाथ बनल साप
विखदन्त भेल। हमर कथा, कथा-व्यथा
तँ अनन्त भेल।

(मिथिला मिहिर: 27.6.65)