भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उपमा / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रखर रौदमे सुखाइत मलाहक जाल
मोट किताबक पन्नामे दबल एक टा पीअर कीड़ा
मेलामे हेरायल बालकक आँखिमे आतंक
पेपरवेटक भीतर बनल लाल-हरियर फूल
पोखरिमे एकसरि नहाइले अबोध बालिका
ई सभ एक हि स्वप्नमे देखल!
(अभिव्यंजना: फरवरी-मार्च, 1963)