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शेख़ का एहतराम करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'

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शेख़ का एहतराम करते हैं ।
दूर से ही सलाम करते हैं ।।

सुब्ह से फ़िक्रे-जाम करते हैं
शाम तक इन्तज़ाम करते हैं ।

सदक़े लेता है हर क़तील उनके
क्या सलीक़े से काम करते हैं ।

उनका मिलना ही सबसे मुश्किल है
वो जो दिल में क़याम करते हैं ।

आज वाएज़ की मान जाते हैं
गोया क़िस्सा तमाम करते हैं ।

उसने क्या कह दिया ज़माने से
सब मेरा एहतराम करते हैं ।

सोज़ शायद चलाचली में हैं
आजकल कम कलाम करते हैं ।।