जयगण भारति / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
जन-मन-हारिणि जय गण-भारति!
सातो स्वरमे बाजय
सोनक आखरमे लिखि पाँती
नवयुग आङन साजय
मुक्त भेल नहि केवल मानव,
मानवता से संगे
जकर चरण ध्वनि कलकल करइछ
उच्छल जलधि तरंगे
अन्तर्नयन फुजल, जग जागल,
जूझल मन बड़भागी
अरपल तन-मन-प्राण सहित कत
छल दलितक अनुरागी
तकरे चरण-चिह्नपर चलइछ
युगक मनक अभिलाषा
दिन दिन अन्तर्बल बढ़इत अछि
बढ़इछ सूतल आशा
जय स्वतन्त्रते! मुक्तिदायिनी
जन-जन-मनमे जागू
रणचण्डी छथि हाथ जोड़ि कय
ठाढ़ि अहींकेर आगू
जन्मत जन-मत नमत अहिंक लग
बड़बड़ भाग्य-विधाता
जय स्वतन्त्रते! शान्तिदायिनी
गाबथि भारतमाता
हरखक नोरेँ चरण पखारथि
पुलकित शिशरक रानी
जय स्वतन्त्रते! गरजि रहल छथि
पर्वतराज हिमानी
बदलि रहल अछि जगतक कणकण
बदलत सभ परिभाषा
जय स्वतन्त्रते! गर्जन-ध्वनि सुनि
भागल मनक निराशा
घर घर मानव गाँथि रहल अछि
शान्ति-सुमनकेर माला
जय स्वतन्त्रते! पजरि उठय नहि
जगमे युद्धक ज्वाला