Last modified on 10 अगस्त 2015, at 13:54

विधिक चिन्ता / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 10 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कल्पनाक व्योममे
भावनाक यान पर
चढ़ल चढ़ल घमै दी,
घूमि घूमि देखै’ छी
पूब तथा पच्छिम केँ,
उत्तर ओ दच्छिन के,
चारू टा कोन तथा
धराकेँ, खमण्डलकेँ,
मानवकेर अन्तरमे
दानव जै पैसल अछि
जकर अट्टहाससँ ई
मुखरित दिगन्त अछि
सौंसे भूगोलकेर।
ब्रह्मा दय माथ हाथ
बैसल झखैत छथि,
कयलनि ओ सोचि कते
रचना मनुष्यकेर,
सृष्टिक सभ साधन दय
श्रेष्ठ सभहि प्राणीमे,
किन्तु आइ बैह बनल
कारण विनाशकेर
अपनेसँ अपनाकेँ
बंचित करैत अछि,
मस्तिष्कक टेमीपर
हृदयक सभ कोमलता
दीप परक फनिगा जकाँ
कूदि कय जरैत अछि।
ब्रह्मा दय माथ हाथ
बैसल झखैत छथि।