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आइ उमकि उमकि / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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आइ उमकि उमकि बमकि रहल
बंकड़ा जवान
देब देश हेतु जान
मातृभूमिकेर राखि लेब
मान ओ गुमान
शत्रु सीमापर फानि
आबि, ठाढ़ तोप तानि,
चानि चूरि चीनकेर
करब चूल्हिमे चलान।
अंग-अंगमे उमंग
देखि दुष्ट दैत्य दंग
संग संग जंगकेर
रंग-ढंग घमासान।
बन्धु बूझि कयल प्रीति,
थीक आर्यकेर रीति,
किन्तु आब ने प्रतीति
नीति देखि अनठेकान।
हाथ रामकेर वाण,
परशुरामकेर कृपाण,
प्राणदान छाड़ि पाबि
सकत आन कोन त्राण।
बन्द बुद्धिमे कपाट,
छाड़ि बुद्धकेर बाट,
ठाठ ठाठि ई कुठाठ
होयत युद्धमे हरान।
ताकि ताक शत्रुताक
जानि बूझि ई वराक
विश्व संघसँ फराक
बैसि करय कूद फान।
प्राण दान माङि जाउ,
माङि चारि खूट खाउ,
चाउ-माउ ले लजाउ
बाउ! बापकेर बथान।