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युद्ध: एक समाधान / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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सुनै’ छिऐ हमहूँ
आ अपनहुँकेँ सुनल होयत
मानव मस्तिष्कक प्रयासेँ ई विश्व आब
सुटुकि-सिकुड़ि-सकुचि घोंकचि
छोट भेल जाइत अछि,
मानवकेर चरण-धूलि
चन्ना मामाक चानि चढ़ल,
चिकरि जना रहल मानव मस्तिष्कक बल
मंगल पर कहुना अमंगल पहुँचि जाय
ताहि हेतु अन्तरिक्ष-यान सभ घुमैत अछि।
आइ विश्व-बन्धुताक भाव
सभक अन्तरमे
इजोड़ियाक चन्द्रमा समान बढ़ल जाइत अछि।
संसारक शक्तिमान, सम्पतिशाली सभ
देश आइ चाहि रहल
धरतीपर मनुज जाति
रहि न सकय भूखल ओ, नाङट, विपन्न,
किन्तु
ई सभ सिद्धान्त थीक,
सिद्धान्तक पालन तँ बुधियारक मण्डलमे
साफ कय बुड़ित्व नहि तँ
शुद्धता अवश्य थीक।
फलाँ-चिलाँ शुद्ध छथि
अर्थात् सुधंग छथि,
संसारक छौ पाँच किछुओ ने बूझल छनि,
गरजय से बरिसय नहि कहबी प्रसिद्धे अछि।
देखि लियऽ पूब दिशा लाल भेल जाइत अछि,
जल-थल-आकाश लाल
मानवकेर शोणितमे रङल
विश्व-बन्धुताक भाव सेहो भेल लाल
कालक तँ गाल लाल होयबे आवश्यक अछि।
सधने अछि चुप्पी संसारक ईमान-धर्म
सधने अछि चुप्पी सभ साधन-सम्पन्न देश
सघने अछि चुप्पी संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा
हम छी चिचिआइत-
ई शरणार्थीकेर बाढ़ि
भारी समस्या अछि।
यैह जे समस्या से सिद्ध करय एक बात
युद्ध कोनो देशक घरैया बात रहल नहि,
साफ कय समस्या
मनुष्य नामधारी जीवमात्र हेतु
एक रंग घातक उपस्थित अछि।
युद्ध, युद्ध, युद्ध!
जाहि युद्धक भय मानवकेँ
कयने रहैछ त्रस्त, सैह ग्रस्त कयने अछि।
जागह हे बन्धु!
व्यर्थ भागह नहि युद्धभयेँ,
सृष्टिक समस्या केर अन्तिम समाधान
युद्धमात्र होयत,
बात गीरह ई बान्हि लैह।