भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उचकू मेरा नाम / देवीदत्त शुक्ल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 11 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मैं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं काशी का रहने वाला, उचकू मेरा नाम,
सदा मिठाई मैंने खाई, दिया न एक छदाम!
पेड़ा, बरफी और जलेबी खाए हैं भरपूर,
रबड़ी, पेड़ा, बड़ी इमरती, लड्डू मोतीचूर!
पढ़ी पोथियाँ मैंने गुरु से छोटी-बड़ी तमाम,
पंडित बनकर घर आया हूँ करने को आराम!
यहाँ बैदकी करके अब मैं पाऊँ सबसे मान,
टके कमाकर घर बनवाऊँ पक्का आलीशान!
-साभार: बालक, दिसंबर 1920, 379