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गूँज! / गोकुलचंद शर्मा
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एक कुएँ के ऊँचे तट पर,
गाता था लेटा चरवाहा!
उठी तरंग किया मुँह नीचे,
बोला हो-हो, हा-हा हा-हा!
भरकर यह आवाज़ कुएँ में,
लौटी ज्यों ही त्यों ही ओ हो-
हो-हो हा-हा हा-हा हो-हो,
हो-हो हा-हा हा-हा हो-हो!
वह उजड्ड बालक तब डरकर
भागा घर को मुट्ठी बाँधे
आँसू आँखों में भर आए
और रहा था चुप्पी साधे।