भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताज़गी कुछ नही हवाओं में / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:57, 29 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी }} [[Category...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ताज़गी कुछ नही हवाओं में

फस्ले‍‌‍‍‍‍‌‌-ग़ुल जैसे है खिज़ाओं में.


हम जिसे मन की शांति हैं कहते,

वो तो मिलती है प्रार्थनाओं में.


यूं तराशा है उनको शिल्पी ने

जान- सी पड़ गई शिलाओं में.


जो उतारी थीं दिल में तस्वीरें

वो अजंता की है गुफाओं में.


सच की आवाज़ ही जहाँ वालो,

खो गई वक्त की सदाओं में.


तू कहां ढूँढने चली ‘देवी’

बू वफाओं की बेवफाओं में.