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तीव्र जलती है तृषा अब... / कालिदास
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तीव्र जलती है तृषा अब भीम विक्रम और उद्यम
भूल अपना, श्वास लेता बार-बार विश्राम शमदम
खोल मुख निज जीभ लटका अग्रकेसरचलित केशरि
पास के गज भी न उठ कर मारता है अब मृगेश्वर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!