दृढ़ छी, दृढ़ता अछि मन्त्र महान
स्वदेशहुकेँ दृढ़ वेगि बनाएब,
हम कए देब अन्त कुनीति कुपन्थक
सत्य सुरीतिक ठान ठनाएब,
अछि के पथ रोकत ठाढ़ भए जे
चट थापर मारि हकन्न कनाएब,
निज त्यागक आगिमे झोंकि मदान्धकेँ
कए महाताण्डव मोद मनाएब।
गुड़रै छथि जे बलहीनक ऊपर
आँखि तनीक दुनू हम फोड़ब,
नहि मानव भए ‘भुवनेश’ कठोर
कदर्यक दर्प सुनिश्चय तोड़ब,
क्षणभंगुर जीवन छी जन औ!
कहु मानवतासँ किए मुँह मोड़ब
निज स्वत्वक हेतु पताका उड़ा
सभ शक्तिसँ भक्तिक बन्धन जोड़ब।