भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेरणा / यात्री
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 19 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यात्री |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithiliRachn...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जगमे सभसौं पछुआयल छी, मैथिल गण! आबहु आगु बढू;
निज अवनति-खाधिक बाधक भै मिलि उन्नति-शिखरक उपर चढू।
अछि हाँइ हाँइ कै लागि पड़ल सभ अपना अपना उन्नतिमे,
उत्थानक एहि सुभग क्षणमे घर बैसि अहीं ने बात गढू।
‘राणा प्रताप, शिवराज, तिलक’ हिनका लोकनिक जीवन-कृति सैं,
तजि आलसकेँ प्रिय बन्धु वृन्द! किछु सेवाभावक पाठ पढू।
भाषा, भूषा ओ भेष अपन हो जगजियार झट जगभरिमे,
ई अटल प्रतिज्ञा ऐखन कै पुनि मातृभूमि पर सोन मढू।