भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदी जो हूँ / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 26 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत पाण्डे |अनुवादक= |संग्रह=जै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कैसे बचा पाती भला
अपना मीठापन
समन्दर में मिल
खारा होना
पहले से ही तय था
नदी जो ठहरी...