शुभ ललना / राजेन्द्र प्रसाद सिंह
शुभ ललना
(बधावा)
दादी जगे पराती ले,
माँ हुलसे सँझवाती ले,
मुसके आठों पहर बहुरिया लड़कोरी,
-राम जिलाएँ भैया – भौजी की जोड़ों .
अरे, विरवा जीवे, शुभ ललना,
हाय, जिये जखीरा, शुभ ललना,
बीते कितने बरस, ण गिरती भीत उठी,
गुजरे कितने मास वगैर अंगोछे के,
पखवारे कट गए बिना गेहूँ खाये;
हफ्ते खछुक हुए महाजन ओछे के,
दिन गिन-गिन दाने जोड़े,
खेल – तमाशे सब छोड़े,
तब आई यह घडी देह के फलने की,
फिर जनमीं उम्मीदें समय बदलने की,
अजी, बढ़े बबुरवा, शुभ ललना,
झरबेरिया लहरे, शुभ ललना,
दादा पेरे गए ईख के कोल्हू में;
बापू पिसते रहे तेल की धानी में,
बोरी ढ़ोते चचा, धनुहिया हुई कमर,
अपनी पसली हँसियाँ हुई जवानी में,
लहू जलाकर त्यौरी पर,
कौड़ी पाकर ड्योढ़ी पर,
परती तोड़ी, -परत न सहते साइन की,
मौसम बदले, -शत्तीन बदली जीने की,
अहो, बधवा गरजे, शुभ ललना,
मुँह जोरवा बरज, शुभ ललना,
हँसे गुसाई छींट पसीना पुरखों का
छठी – दिठौना बांधे दीढ़ तिजोरी की,
बरही आते सरही बंधक से छूटे;
मुंडन होते बाँह कटे बरजोरी की,
कटे फसल करतारी पर,
झुग्गी चढ़े अंटारी पर,
कर्जी – फर्जी की हरबाजी मात रहे,
जलती लाल मलाल हजारों हाथ रहे,
अरे, तने झगडुआ, शुभ ललना,
अरे, लडे जुझरुआ, शुभ ललना.