भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय की पगडंडियों पर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:05, 9 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
समय की पगडंडियों पर
चल रहा हूँ मैं निरंतर
कभी दाएँ, कभी बाएँ,
कभी ऊपर, कभी नींचे
वक्र पथ कठिनाइयों को
झेलता हूँ आँख मींचे
कभी आ जाता अचानक
सामने अनजान सा डर
साँझ का मोहक इशारा
स्वप्न-महलों में बुलाता
जब उषा नवगीत गाती
चौंक कर मैं जाग जाता
और सहसा निकल आते
चाहतों के फिर नये पर
याद की तिर्यक गली में
कहीं खो जाता पुरातन
विहँस कर होता उपस्थित
बाँह फैलाये नयापन
रूपसी प्राची रिझाती
विविध रूपों में सँवर कर