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सोने की कलगी / आरसी प्रसाद सिंह
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सूरज का दरबार लगा
चिड़ियों का बाजार लगा!
सब पंछी चहचहा रहे,
अपनी बोली सुना रहे
सूरज बोला-रहने दो,
मुझको भी कुछ कहने दो!
सबसे पहले जो जागे,
पहुँचे वह मेरे आगे!
स्वयं जागकर चुप न रहे,
औरों को भी ‘उठो’ कहे!
राज मुकुट वह पहनेगा,
राजा की पदवी लेगा!
सबसे पहले ही उठकर,
सूरज के दरवाजे पर-
मुर्गे ने यों दस्तक दी
ऊँची चोटी मस्तक की!
मुर्गा बोला-कुकडू़-कूँ,
और रहे सब टुटरू-टूँ!
मुर्गे ने पाई सिर पर,
सोने की कलगी सुंदर!
अरुण साथ लेकर आया
‘अरुण शिखा’ वह कहलाया!