भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गरीब मां की लोरी / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 17 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सो जा भैया, सो जा बीर!
चाहे हंसता-हंसता सो जा,
चाहे रोता-रोता सो जा,
सो जा लेकर मेरी पीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
जो तू भूखा है, तो सो जा,
जाड़ा लगता है, तो सो जा,
कैसे तुझे बंधाऊं धीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
लाऊं तुझको दूध कहां से?
गद्दे-तकिए मिलें कहां से?
मिलता नहीं फटा भी चीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
भगवान, मेरा दुःख बंटाओ,
जल्दी आकर इसे सुलाओ,
पड़ी द्रौपदी की-सी भीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!