भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तानसेन की नगरी से जो गीत सन्देसा बनकर आए / वीरेंद्र मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:58, 28 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेंद्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तानसेन की नगरी से जो गीत सन्देसा बनकर आए,
तुम दृग से पढ़ लो, प्राणों से सुन लो, वह जो कुछ भी गाए,
संघर्षित कवि के जीवन को अगर भैरवी दुहराती है,
वे निर्माणी गीत उठेंगे, जो अब तक भी हैं अनगाए ।