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अब कोई दार पर नहीं मिलता / कांतिमोहन 'सोज़'
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अब कोई दार पर नहीं मिलता ।
फिर भी कांधे पे सर नहीं मिलता ।।
सबके होठों पे है दुआ लेकिन
उस दुआ में असर नहीं मिलता ।
उसके मिलने की क्या कहूँ हमदम
रोज़ मिलता है पर नहीं मिलता ।
यूँ तो हर शै यहाँ मुयस्सर है
सर छुपाने को घर नहीं मिलता ।
सबकी मंज़िल जब एक है या रब
क्यूं कोई हमसफ़र नहीं मिलता ।
फूस की ढेरियाँ सलामत हैं
क्या कहीं भी शरर नहीं मिलता ।
सोज़ क्या ऑल-फॉल बकता है
क्या तुझे काम कर नहीं मिलता ।।