भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब कोई दार पर नहीं मिलता / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:55, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब कोई दार पर नहीं मिलता ।
फिर भी कांधे पे सर नहीं मिलता ।।

सबके होठों पे है दुआ लेकिन
उस दुआ में असर नहीं मिलता ।

उसके मिलने की क्या कहूँ हमदम
रोज़ मिलता है पर नहीं मिलता ।

यूँ तो हर शै यहाँ मुयस्सर है
सर छुपाने को घर नहीं मिलता ।

सबकी मंज़िल जब एक है या रब
क्यूं कोई हमसफ़र नहीं मिलता ।

फूस की ढेरियाँ सलामत हैं
क्या कहीं भी शरर नहीं मिलता ।

सोज़ क्या ऑल-फॉल बकता है
क्या तुझे काम कर नहीं मिलता ।।