भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब / मीर तक़ी 'मीर'

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:16, 30 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' }} अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब<br> मुझ दिल-ज...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब
मुझ दिल-जले को नींद न आई तमाम शब

चमक चली गई थी सितारों की सुबह तक
की आस्माँ से दीदा-बराई तमाम शब

जब मैं ने शुरू क़िस्सा किया आँखें खोल दीं
यक़ीनी थी मुझ को चश्म-नुमाई तमाम शब

वक़्त-ए-सियाह ने देर में कल यावरी सी की
थी दुश्मनों से इन की लड़ाई तमाम शब

तारे से तेरी पलकों पे क़तरे थे अश्क के
दे रहे हैं "मीर" दिखाई तमाम शब