गाछ बिनु फअड़क / नारायण झा
हमर साँस औना रहल
दम फूलि रहल
देखि क' एहेन
गाछ
गाछ त बड़ नमहर
बड़ ओपगर
सौंसे गाछ मे डगडगी
हरियर-हरियर पात अछि भकरार
हरियरी सँ गाछ लौकैत
बान्ह-काठ सँ चिक्कन-चुनमुन
आकर्षित करैए सभ केँ
गाछक डारि सँ फुनगी तक
एहेन छटा छिड़िऔने
घूरि-घूरि निहारैत आन्हरो
गाछक फअड़
फअड़ त निपत्ता
फअड़क लेल गाछ
कोनो ओरिआओन नहि क' रहल
एखन तक हरियरी बलेँ
अपन हाड़-काठ बलेँ टकुआतान
सुरभि उड़ियबैत चहुँदिश
वायुमंडलक कण-कण तक
कखनहुँ स्वयं केँ नहि ललकारक
अपन ओज केँ नहि जगौलक
फअड़ बिनु
हमरा ई गाछ
सजीव रहितहुँ देखाइछ निर्जीव
नहि सोहाइत अछि कनडेरियो
बिनु फूल आ फअड़क
गाछक की सुन्दरता आ महत्व
मात्र अपनहुँ लेल अधकिच्छु
एहि गाछक रोम -रोम मे
जुआनी अनोर तोड़ैत अछि
मदमस्त भँ चाननो गाछ केँ
सकुचा लजा रहल अछि
मुदा एहि गाछक सुन्दरता
आओर बढ़ि अकास चूमितय
जखन ओ अपन अस्तित्वक लेल
आतुरता-व्याकुलता सँ
दितय औनी-पथारी
आ बनि सकितय
पूर्ण गाछ।