भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राष्ट्रीय विकास / नारायण झा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:59, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नारायण झा |अनुवादक= |संग्रह=प्रति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राष्ट्रीय विकास
विकासक ढोलहा
मने-मन गढ़ि
आत्मसंतुष्टि मात्र क' रहल छी
सत् बात केँ झाँपि
सरकारी आँकड़ा जुटा रहल छी।

की विकास, केहेन विकास
जतय गरीब लगौने
शताब्दियहुँ सँ एकटक्क
विश्वासक आस जोहैत
पिसा रहल
कागत आ कम्प्यूटरक रिपोर्ट पर
अंधविश्वास केँ फुफुआ रहल छी।

ओ एखनहुँ धरि गुलाम अछि
एक बीत पेटक लेल बदनाम अछि
एखनहुँ दब्बू बनल अछि
सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण सँ
रोटी संग खा सुखल नोन सँ
एखनहुँ धरि टुटलाहा टाट
संग ऊपर चढ़ौने पटेर
सुतैत, बितबैत संग खाट
एहने अछि अपन देशक विकास
फुसियो गाल बजा रहल छी।

एक दिस मलाइ संग ब्रेड
माछ, अंडा आ मुरगा
भोग चढ़ैछ दिन-राति
जाहि सँ नापल जाइछ
हमर देशक विकास
की उचित थिक?
कखनहुँ नहि पचि रहल
बिनु बजने मन नहि मानि रहल
एहेन विकासक नाम पर नग्न नाटक।

एखनहुँ सर्वशिक्षा अभियानक पोशाक
लेढ़ायल माटि मे
पहिरि क' घास कटैत
पेटक इंतजाम मे जरैत
मवेशी केँ टहलबैत
नालाक पन्नी बिछैत
ट्रेनक बोगी मे पान-बीड़ी बिछैत
लज्जित करैत
दुतकारैत एहि व्यवस्था संग
हमर राष्ट्रीय विकास केँ।