भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नई सुबह के तारे हम / भगवतीप्रसाद द्विवेदी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:13, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवतीप्रसाद द्विवेदी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम बागों की हरियाली हैं-
चिड़ियों के चहकारे हम!
हम नदियों की कल-कल, छल-छल
नई सुबह के तारे हम!

हममें है फूलों की खुशबू
झरनों का मधुमय संगीत,
हममें रंग भरे तितली के
हम प्रकृति के हैं नवगीत।
हम श्रोता हैं परी कथा के
दुनिया के उजियारे हम!

हम जीवन के मीठे सपने
हँसी-खुशी के बाइस्कोप,
हम जब खुलकर मुस्कातेहैं
दुख हो जाता पल में लोप।
चहकें-महकें मगर न बहकें
सबसे न्यारे, प्यारे हम!
हम बागों की हरियाली हैं,
चिड़ियों के चहकारे हम!