लंबे-लंबे बाल बढ़ाए,
हिप्पी जैसे बादल आए।
काले-काले, भूरे-भूरे,
कवियों से मनमौजी पूरे।
मोर पंख की गंजी पहने,
इंद्रधनुष की पैंट चढ़ाए।
साथ हवाओं के हो लेंगे,
कई-कई दिन पता न देंगे।
और मूड में कई-कई दिन,
बने रहेंगे झड़ी लगाए।
बिजली संग नाचे-झूमेंगे,
आसमान भर में घूमेंगे।
आँधी-पानी वाले झोले
हरदम कंधों से लटकाए।
-साभार: पराग, जुलाई, 1978, 4