भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कार्बन पेपर / वर्षा गोरछिया 'सत्या'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वर्षा गोरछिया 'सत्या' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुनो न
कहीं से कोई
कार्बन पेपर ले आओ
खूबसूरत इस वक़्त की
कुछ नकलें निकालें
कितनी पर्चियों में
जीते हैं हम
लम्हों की बेशकीमती
रशीदें भी तो हैं
कुछ तो हिसाब
रक्खें इनका
किस्मत
पक्की पर्ची तो
रख लेगी ज़िंदगी की
कुछ कच्ची पर्चियां
हमारे पास भी तो होनी चाहिए
कुछ नकलें
कुछ रशीदें
लिखाइयां कुछ
मुट्ठियों में हो
तो तसल्ली रहेगी
सुनो न
कहीं से कोई
कार्बन पेपर ले आओ