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ऐसा होगा क्या कभी / वर्षा गोरछिया 'सत्या'
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वो सहर होगी क्या कभी
जब कौमें
अपने काफिले छोड़
इंसानों से हाथ मिलाएगी
कबीले होंगे क्या कभी
चाहतों के
क्या मोहब्बत
मंदिरों की घंटियों
या
मस्जिदों के नमाज़ों में
सुनाई देगा किसी दिन
क्या हम खदेड़ पाएंगे
मज़हबों को
किसी रोज़
कह्कशाओं से पर
जहाँ न आरती सुनाई दे
न अज़ान का भ्रम हो
क्या ऐसा होगा
कि
मोहब्बत और इंसानियत की
फ़तह हो
ऐसा होगा क्या कभी