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घातक खल की मित्रता / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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घातक खल की मित्रता, जहर पराई नारि।
विष से बुझी कटार हो, सिर से ऊपर वारि॥
सिर से ऊपर वारि, गाँव से वैर ठना हो।
कर लेकर तलवार, सामने शत्रु तना हो। 
'ठकुरेला' कविराय, अभागा है वह जातक।
स्वजन ठान लें वैर, और बन जायें घातक॥
	
	