भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कंदील / असंगघोष

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:07, 10 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=खामोश न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कंदील<ref>लालटेन</ref>

मेरा बेटा
देखना चाहता है
कंदील की रोशनी
उसने पहले कभी
देखा नहीं था कंदील
मेरी माँ से सुना
पापा पढ़ा करते थे
तुम्हारी उम्र में
कंदील की रोशनी में।
बिजली के बारे में
आज पहली बार
उसने देखा कंदील छपा हुआ
लालू के चुनाव प्रचार पोस्टर में
कंदील की रोशनी
नहीं देखी अब तक
मेरी माँ ने कहा उससे
तुम्हें मिलेगा
अपने दादा द्वारा सहेजकर रखे
पुराने सामान में खोजने पर
टूटी हुई हण्डी लगा कंदील
जिससे घासलेट झरा करता था
पड़ा होगा अटारी में
अपने दुर्दिनों पर आँसू बहाता।

बेटा!
तुम पोंछ सको तो
पोंछना उसके आँसू
साफ करना उस पर घिर आई कालिमा
प्रदीप्त करना उसे
जब बिजली हो गुल
उसकी यादों में
खो जाना पढ़ते हुए
तब बताएगा तुम्हें वह
कैसे काम करते थे तुम्हारे दादा?
कैसे पढ़ते थे तुम्हारे पिता?
केसे निपटाती थी मैं घर का काम
दिन भर की बेगारी के बाद
घने अन्धकार में
एक अकेले प्रकाशमान
कंदील के साथ।

बेटा!
तुम पूछना उससे
कैसे चलाते थे हम घर?
कैसे पढ़ाते थे तुम्हारे पिता को?
उसके समय में
वही तो एकमात्र चश्मदीद गवाह है
हमारे समय का
तुम्हारे समय में।

शब्दार्थ
<references/>