भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिलबिल जी / सुंदरलाल 'अरुणेश'
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:48, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण (Anupama Pathak ने चिलबिल जी / सुंदरलाल अरुणेश पृष्ठ चिलबिल जी / सुंदरलाल 'अरुणेश' पर स्थानांतरित किया)
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल,
करते रहते किलबिल-किलबिल।
कुर्ता इनका बिल्कुल चिरकिट,
सिर को झिटकें जैसे गिरमिट।
पाजामा है ढिलमिल-ढिलमिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।
बात-बात में करते टिर-टिर,
चलते-चलते पड़ते गिर-गिर।
कहते हैं सब इनको पिल-पिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।
दिन भर ठुनका करते ठिन-ठिन,
लोट-लोट जाते हैं पल छिन।
बिस्कुट पाकर हँसते खिलखिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।