भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र (दो) / धूमिल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:58, 4 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धूमिल |संग्रह =सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र / धूमिल }} न ...)
न कोई प्रजा है
न कोई तंत्र है
यह आदमी के खिलाफ़
आदमी का खुला सा
षड़यन्त्र है ।
xxxxxxx
हर बार की तरह
तुम सोचते हो कि इस बार भी यह
औरत की लालची जांघ से
शुरू होगा और कविता तक
फैल जाएगा ।
बिल्ली का पंजा
चूहे का बिल है ।