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पुस्तक मेले से लौटते हुए / असंगघोष

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वह आदमी
काँख में झोला लिए
पूछता है मुझसे
”बाबूजी पालिश दो रुपया“

पालिश करते-करते पूछता है
”मथुरा कितनी दूर है?“

मुझे नहीं मालूम
मथुरा है कितनी दूर
पर मैं जानता हूँ
मथुरा में माँगते हैं पण्डे
बेवजह पीछा कर दक्षिणा
बगैर कुछ करे-धरे

पालिश करता यह मेहनतकश आदमी
भीख नहीं माँगता
अपनी भूख मिटाने
फिर मथुरा है कितनी दूर
क्यों पूछ रहा है?

अखबार से नजर हटा
मैंने कहा मथुरा के हो
”नहीं! कोसी का हूँ“
मैंने सोचा शायद उसी कोसीकलाँ का हो
जहाँ चलती ट्रेन से फेंक दिया था बाहर
प्रधानमंत्री के नाती को
जिज्ञासा से जानना चाहा मैंने
उसी कोसीकलाँ के

फिर कहता है व
”नहीं“,
और तल्लीनता से
करता रहता है पॉलिश

मैं पूछूँ
उसका नाम,
परिवार के बारे में जानूँ
और कुछ कहूँ
इससे पहले ही वह आगे बढ़ जाता है।
”बाबूजी पालिश दो रुपया“