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बनि गए नन्द लाल लिलिहारी / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दोहा- श्री राधे से मिलन को, कियो कृष्ण विचार।
बन्शी मुकुट छिपायके, घरौ रूप लिलहारि॥
बनि गये नन्दलाल लिलहारी, लीला गुदवाय लेओ प्यारी।
लहँगा पहन ओढ़ सिर सारी।
अँगिया पहरी जापै जड़ी किनारी॥
शीश पै शीश फूल बैना, लगाय लियौ काजर दोऊ नैना।
पहन लियो नख-शिख सौं गहना

दोहा- नखशिख गहनों पहिर कै, कर सोलह सिंगार।
बलिहारी नैद नन्दन की, बनि गए नर से नारि॥
बन गए नर से नारि कि झोली कंधा पै डारी॥ 1॥

धरी कन्धा झोली गठरी।
गैल बरसाने की पकरी॥
महल वृषभान चले आये, नहीं पहचान कोऊ पाये।
श्याम अति मन में हुलसाये॥

दोहा- महल श्री वृषभान के, दई आवाज लगाय।
नन्दगाम लिलहार मैं, कोउ लीला लेउ गुदाय॥
लीला लेउ गुदाय गरी मैं हूँ गोदनहारी॥ 2॥

राधिका सुन लिलिहारिन बैन।
लगी ललिता से ऐसे कहन॥
बुलाओ लिलिहारिन कूँ जाय, मैं यापै लीला गुदाय।
बिसाखा लाई तुरत बुलाय।

दोहा- लिलिहारिन कौ रूप लखि, श्री वृषभान कुमारि।
हंस-हंस के कहने लगी, लई पास बैठारि॥
लीला मो तन गोद सुघड़ कैसी गोदनहारी॥ 3॥

शीश पे लिखदै श्री गिरधारी जी।
माथे पै लिख मदनमुरारी जी॥
दृगन पै लिखदै दीनदयाल, नासिका पै लिखदै नन्दलाल।
कपोलन पे लिख कृष्णगुपाल।

दोहा- श्रवन पै लिख साँवरौ, अधरन आनन्दकन्द।
ठोड़ी पै ठाकुर लिखो, गल में गोकुलचन्द॥
छाती पै लिख छैल, दोऊ बाहन पे बनवारी॥ 4॥

हाथ पै हलधर जू को भैया जी।
उंगरिन पै आनन्द करैया जी॥
पेट पे लिख दै परमानन्द, जाँघ पै लिख दै जैगोविन्द।
नाभि पे लिख दै श्री नन्दनन्द।

दोहा- घोंटुन में घनश्याम लिख, पिडरिन में प्रतिपाल।
चरनन में चितचोर लिख, नख पै नन्द को लाल।
रोम रोम में लिखो रमापति, राधा-बनवारी॥ 5॥

लीला गोद प्रेम-गश आयौ जी।
तन-मन कोा सब होश गमायौ जी॥
खबर झोली-डंडा की नाँय, धरन पै चरन नाँय ठहराँय।
सखी सब देखत ही रह जाँय।

छन्द- देखत सखी सब रह गई, झगरौ निरखकर फंद को।
बीसौ बिसै दीखे सखी, छलिया है ढोटा नन्द कौ।
अँगिया में वंश छिप रही, राधे ने लई निहारकैं।
हे प्यारी - हे प्यारी कही भेंटे हैं भुजा पसार कें।
‘घासीराम’ जुगल जोड़ी पै, बार-बार बलिहारी॥ 6॥
बन गए नन्दलाल.॥