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शृंगार बसन्ती है / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

श्याम श्याम सलौनी सूरत कौ सिंगार बसन्ती है॥ टेक
मोर मुकुट की लटक बसन्ती, चन्द्रकला की चटक बसन्ती
मुख मुरली की मटक बसन्ती।

सिर पै पेच श्रवन-कुण्डल छबिदार बसन्ती है॥ श्यामा.
माथे चन्दन लग्यौ बसन्ती, पट पीताम्बर कस्यौ बसन्ती
मेरे मनमोहन बरयौ बसन्ती।

गुंजमाल गल सोहैं फूलन हार बसन्ती है॥ श्यामा.
कनक कडूला हस्त बसन्ती, चलै चाल अलमस्त बसन्ती
पहर रहे हैं वस्त्र बसन्ती॥

रुनक-झुनक पग नूपुर की झनकार बसन्ती है॥ श्यामा.
संग ग्वालन कौ गोल बसन्ती बजे चंग ढपढोल बसन्ती
बोल रहे हैं बोल बसन्ती॥

सब सखियान में राधेजी सरदार बसन्ती है॥ श्यामा.
परम प्रेम परसाद बसन्ती, लगे रसीलौ स्वाद बसन्ती
है रही सब मरियाद बसन्ती॥

‘घासीराम’ नाम छीतरमल सार बसन्ती है॥
श्यामा श्यामा सलौनी सूरत कौ शृंगार बसन्ती है॥