भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं होरी कैसे खेलूँ री / ब्रजभाषा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:41, 27 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=सूरदास }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रजभाष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
♦ रचनाकार: सूरदास
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
मैं होरी कैसे खेलूँ री जा साँवरिया के संग रंग मैं होरी
कोरे-कोरे कलश मँगाये उनमें घोरौ रंग।
भर पिचकारी ऐसी मारी चोली हो गई तंग॥ रंग में.
नैनन सुरमा दाँतन मिस्सी रंग होत भदरंग।
मसक गुलाल मले मुख ऊपर बुरौ कृष्ण कौ संग॥ रंग में
तबला बाज सारंगी बाजी और बाजी मृदंग।
कान्हा जी की बाँसुरी बाजे राधाजी के संग॥ रंग में
चुनरी भिगोये, लहँगा भिगोये छूटौ किनारी रंग।
सूरदास कौ कहा भिगोये कारी कामर अंग॥ रंग में