भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होरी खेली न जाय / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:42, 27 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रजभाष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नैनन में पिचकारी दई, मोय गारी दई,
होरी खेली न जाय, होरी खेली न जाय॥ टेक
क्यों रे लँगर लँगराई मोते कीनी, ठाड़ौ मुस्काय॥ होरी.
नेक नकान करत काहू की, नजर बचावै भैया बलदाऊ की।
पनघट सौ घर लौं बतराय, घर लौं बतराय॥ होरी.
औचक कुचन कुमकुमा मारै, रंग सुरंग सीस ते ढारै।
यह ऊधम सुनि सासु रिसियाय, सुनि सासु रिसियाय॥ होरी.
होरी के दिनन मोते दूनौ अटकै, सालिगराम कौन याहि हटकें।
अंग लिपटि हँसि हा हा खाय॥ होरी.