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भाभी / जनार्दन राय

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माँ की ममता तुम में पाया,
पाया प्यार तुम्हारा।
कृपा मिली करुणा की तुम से
जीवन धन्य हमारा।

अग्रज का था प्यार प्राप्त,
थी मिली खुशी की दुनियां।
सींची उसको स्नेह-सलिल से,
उपजी सुख की कलियाँ।

देख सकी आँसू न नयन में,
चिन्तित चित उदासी।
धन्य भाग्य देवर का भाभी
मिली जो तू जननी सी।

तेरा प्यार बढ़ाया मुझको,
तेरा स्नेह जगाया
तेरी ज्योति पवित्र बनायी,
दुर्बल मेरी काया।

तुम हो देवी स्नेह-सुरसरी,
है पवित्र जल तुम में।
धोया तुमने शक्ति लगाकर
जो कुछ मल था मुझमें।

आँखें थकी न राह देखती,
सोच सदा हित मेरा।
मुझे न चिन्तित देख सकी,
कितना गुण गाऊँ तेरा।

मिली न तुमको पूजा मुझसे,
मिली न मेरी सेवा।
फिर भी प्यार बना है तेरा,
देने माखन-मेवा।

युग-युग जीओ भाभी मेरी,
चरण न छूटे मेरा।
भक्ति हमारी कृपा तुम्हारी,
आशीष दे बस मेरा।

-दिघवारा,
9.2.1953